!['Tundey kababi](https://cdn-img01.wowfoodrecipes.com/images/51-m/811/811343.jpg)
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May 28, 2022
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'जानिए टुंडे कबाब की असली कहानीamarujala.com- Written by : हरेन्द्र सिंह मोरल टुंडे के कबाब, जिसे भैंस के मांस गलौटी कबाब के नाम से भी जाना जाता है, कीमा बनाया हुआ मांस से बना एक व्यंजन है जो लखनऊ, भारत में लोकप्रिय है। यह अवधी व्यंजन का हिस्सा है। कहा जाता है कि इसमें 160 मसाले शामिल हैं।[2] सामग्री में बारीक कीमा बनाया हुआ बकरी का मांस, [3] [4] सादा दही, गरम मसाला, कसा हुआ अदरक, कुचल लहसुन, पिसी हुई इलायची, पिसी हुई लौंग, पिघला हुआ घी, सूखे पुदीना, छोटे प्याज के छल्ले, सिरका, केसर, गुलाब जल, चीनी, चूना। टुंडे के कबाब को अवध के नवाब वाजिद अली शाह से मिलवाया गया था। lucknow का प्रतिष्ठित खाने वाला संयुक्त टुंडे कबाबी, 1905 में शुरू हुआ, भैंस के मांस गलौटी कबाब परोसने के लिए प्रसिद्ध हैलखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी बीती सदी के शुरूआत से ही शुरू होती है, जब 1905 में पहली बार यहां अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। हालांकि टुंडे कबाब का किस्सा तो इससे भी एक सदी पुराना है। दुकान के मालिक 70 वर्षीय रईस अहमद के अनुसार उनके पुरखे भोपाल के नवाब के यहां खानसामा हुआ करते थे। नवाब खाने पीने के बहुत शौकीन थे, लेकिन उम्र के साथ मुंह में दांत नहीं रहे तो खाने पीने में दिक्कत होने लगी। बढ़ती उम्र में भी नवाब साहब और उनकी बेगम की खाने पीने की आदत नहीं गई ऐसे में उनके लिए ऐसे कबाब बनाने की सोची गई जिन्हें बिना दांत के भी आसानी से खाया जा सके। इसके लिए गोश्त को बारीक पीसकर और उसमें पपीते मिलाकर ऐसा कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही घुल जाए। पेट दुरुस्त रखने और स्वाद के लिए उसमें चुन चुन कर मसाले मिलाए गए। इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया और अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान शुरू कर दी गई।हाजी जी के इन कबाबों की शोहरत इतनी तेजी से फैली की पूरे शहर भर के लोग यहां कबाबों का स्वाद लेने आने लगे। इस शोहरत का ही असर था कि जल्द ही इन कबाबों को अवध के शाही कबाब का दर्जा मिल गया। इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा है। असल में टुंडे उसे कहा जाता है जिसका हाथ न हो। रईस अहमद के वालिद हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन थे। एक बार पतंग के चक्कर में उनका हाथ टूट गया। जिसे बाद में काटना पड़ा। पतंग का शौक गया तो मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे। टुंडे होने की वजह से जो यहां कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब बोलने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब। बेटियों को भी नहीं बताया मसालों का राज खास बात ये है कि दुकान चलाने वाले रईस अहमद यानि हाजी जी के परिवार के अलावा और कोई दूसरा शख्स इसे बनाने की खास विधि और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता है। हाजी परिवार ने इस सीक्रेट को आज तक किसी को भी नहीं बताया यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं। यही कारण है कि जो कबाब का जो स्वाद यहां मिलता है वो पूरे देश में और कहीं नहीं। कबाब में सौ से ज्यादा मसाले मिलाए जाते हैं। हाजी रईस के अनुसार आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है जो सौ साल पहले मिलाए जाते थे, आज तक उन्हें बदलने की जरूरत नहीं समझी। कहा जाता है कोई इसकी रेसीपी न जान सके इसलिए उन्हें अलग अलग दुकानों से खरीदा जाता है और फिर घर में ही एक बंद कमरे में पुरुष सदस्य उन्हें कूट छानकर तैयार करते हैं। इन मसालों में से कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से भी मंगाए जाते हैं।खास बात ये है कि इन टुंडे कबाबों की प्रसिद्धी बेशक पूरी देश दुनिया में हो लेकिन हाजी परिवार ने इनकी कीमतें आज भी ऐसी रखी हैं कि आम या खास किसी की जेब पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। परिवार का ध्यान दौलत से ज्यादा शोहरत कमाने पर रहा। जब दुकान शुरू हुई थी तो एक पैसे में दस कबाब मिलते थे फिर कीमतें बढ़ने लगी तो लोगों को दस रुपये में भर पेट खिलाते थे। आज दो रुपये में एक कबाब मिलता है तो पांच रुपये का एक परांठा। इन कबाबों को परांठों के साथ ही खाया जाता है। परांठे भी ऐसे वैसे नहीं मैदा में घी, दूध, बादाम और अंडा मिलाकर तैयार किए जाते हैं। जो एक बार खाए वो ही इसका दीवाना हो जाए। इस स्वाद का ही असर है कि शाहरुख खान, अनुपम खेर, आशा भौंसले जैसे और सुरेश रैना जैसे बड़े बड़े नाम टुंडे कबाब खाने यहां आ चुके हैं। 'See also:
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